Sunday, April 12, 2009

अक्सर याद आती है

गहन सघन मनमोहन वन तक मुझको आज बुलाते है,किन्तु किये जो वादे मैंने याद मुझे आ जाते हैं ,अभी कहाँ आराम बदा यह मूक निमंत्रण छलना है,अरे अभी तो मीलो मुझको चलना है ! :- बच्चन साहब

इन्हीं बिगडे दिमागों में ख़ुशी के तार उलझे हैं हमें पागल हीं रहने दो हम पागल हीं अच्छे हैं :- नेपाली साहब

रहने दे आसमान .... ज़मीन की तलाश कर ,सबकुछ यहीं है ॥ न कहीं और तलाश कर,हर आरजू पूरी हो तो जीने का क्या मज़ा ,जीने के लिए बस एक वजह की तलाश कर ॥ अ

आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है,उलझने अपनी बनाकर आप हीं फंसता,और फिर बेचैन हो जगता , न सोता है॥

मशरतो(खुशियाँ ) पर रिवाजों का सख्त पहरा है ,न जाने किस उम्मीद पर जाकर ये दिल ठहरा है ! तेरी आँखों से टपकनेवाले उस गम की कसम ,दर्द का रिश्ता ही ए दोस्त सबसे गहरा है !

दर्द इतना है कि हर रग में है मह्शरा (क़यामत ) बरपा और शुकुं इतना है कि मर जाने को दिल करता है !

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