Sunday, April 12, 2009

वर दे वीणा वादिनी वर दे,वर दे वीणा वादिनी वर दे।

महाप्राण निराला जी के सत्य वचनों को मेरा सादर नमन और वीणा की देवी को क्षमा के साथ नई ज़माने की आराधना वर दे वीणा वादिणी वर दे।
वर दे वीणा वादिनी वर दे,वर दे वीणा वादिनी वर दे,
करना हो पत्रकारिता,तो कलम धर दे,बढना हो आगे तो जोरू या ज़र दे,
वर दे वीणा वादिनी वर दे,वर दे वीणा वादिनी वर दे।
वर दे वीणा वादिनी वर दे,वर दे वीणा वादिनी वर दे,
खबर की कामना नहीं,मुझे सांप या अजगर दे,नभ ज़मीन का नहीं तो,जल की मछली मगर दे,
वर दे वीणा वादिनी वर दे,वर दे वीणा वादिनी वर दे।वर दे वीणा वादिनी वर दे,
वर दे वीणा वादिनी वर दे,
अज्ञानी कर रहे राज,मुझे भी अज्ञानता का वर दे,अच्छाई रखें आप,मुझमें कमीनापर,नीचता भर दे।
वर दे वीणा वादिनी वर दे,वर दे वीणा वादिनी वर दे।वर दे वीणा वादिनी वर दे,वर दे वीणा वादिनी वर दे,
माते है मेरा निवेदन जोश मुझमें ऐसा भर दे,पकडूँ मै गरदन नेता की,तलवार तू धर दे,वर दे वीणा वादिनी वर देवर दे वीणा वादिनी वर दे।
:-अनुराग अमिताभ जी के सौजन्य से





(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित कविता)
या देवी सर्व भूतेषु'कैब्रे' रूपेण संस्थिता।हे देवी, तुम 'कैब्रे' बन कर,दिल दिल से मिल नाच रही हो;जन-गण-मन की दुर्बलता को,थिरक-थिरक कर माप रही हो।महाकालिका ने ऐसे ही,असुरों का संहार किया था;पर देवी, तुम तो देवों को भी,चुम्बक-सी ललकार रही हो।नमस्तस्यै कैसे कहें?और तुम्हारी ललकार को-भावुक कविगण कैस सहें!
या देवी सर्व भूतेषु'बेल बॉटम' रूपेण संस्थिता।बेल बॉटम में सिमट सुन्दरी,महापुरुष-सी लगती हो;पुरषों से दूरी दूर किये,नये ज्ञान में जगती हो।बालक भी एकाकार हुये,बेल बॉटम का ले आश्रय;डरा न करते वे तुमसे अब,रहा न तुमको भी उनका भय।तुम कहो नमस्तस्मै,वे कहें नमस्त्यै;सब करतल ध्वनि कर चीखेंजय बेल बॉटम जय जय जय।
या देवी सर्व भूतेषु'गाउन' रूपेण संस्थिता।स्लीपिंग गाउन, वाकिंग गाउन,देख देख हो जाते डाउन;वीरों को खूब पछाड़ा है,भारत में बहुत दहाड़ा है।तरुणी युवती वृद्धा प्रौढा,सभी पुजारिन गाउन के;साड़ी फाड़ बनायें गाउन,सदा सुलभ शुभ दर्शन उनके।देसी घोड़ी परदेसी लगाम,क्यों न करें हम उन्हें प्रणाम!गति-यति-लय से चीखेंगे-नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
या देवी सर्व भूतेषु'ब्लाउज' रूपेण संस्थिता।आस्तीन हीन इठलाती हो,चौड़ी गर्दन-मुसकाती हो;फिर भी देवी कहलाती हो,टुनटुन-सी वज्र गिराती हो।पूरब-पश्चिम के भेद सभी,चबा चबा कर खाती हो;ऊँची एँड़ी के सैण्डिल में,खटखट खटखट आती हो।चारों ओर शोर मचता है,हर स्वर हर दम यह रटता है;या देवी सर्व भूतेषुचण्डी रूपेण संस्थिता,नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
(रचना तिथिः 28-11-1980)


वर दे वीणा-वादिनी वर दे।
प्रिय स्वतंत्र रव, अमृत मंत्र नवभारत में भर दे।
काट अंध उर के बंधन स्तरबहा जननि ज्योतिर्मय निर्झरकलुष भेद तम हर प्रकाश भरजगमग जग कर दे।
वर दे वीणा-वादिनी वर दे...नव गति नव लय ताल-छंद नवनवल कंठ नव जलद मंद्र रवनव नभ के नव विहग वृंद कोनव पर नव स्वर दे।वर दे वीणा-वादिनी वर दे...

अक्सर याद आती है

गहन सघन मनमोहन वन तक मुझको आज बुलाते है,किन्तु किये जो वादे मैंने याद मुझे आ जाते हैं ,अभी कहाँ आराम बदा यह मूक निमंत्रण छलना है,अरे अभी तो मीलो मुझको चलना है ! :- बच्चन साहब

इन्हीं बिगडे दिमागों में ख़ुशी के तार उलझे हैं हमें पागल हीं रहने दो हम पागल हीं अच्छे हैं :- नेपाली साहब

रहने दे आसमान .... ज़मीन की तलाश कर ,सबकुछ यहीं है ॥ न कहीं और तलाश कर,हर आरजू पूरी हो तो जीने का क्या मज़ा ,जीने के लिए बस एक वजह की तलाश कर ॥ अ

आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है,उलझने अपनी बनाकर आप हीं फंसता,और फिर बेचैन हो जगता , न सोता है॥

मशरतो(खुशियाँ ) पर रिवाजों का सख्त पहरा है ,न जाने किस उम्मीद पर जाकर ये दिल ठहरा है ! तेरी आँखों से टपकनेवाले उस गम की कसम ,दर्द का रिश्ता ही ए दोस्त सबसे गहरा है !

दर्द इतना है कि हर रग में है मह्शरा (क़यामत ) बरपा और शुकुं इतना है कि मर जाने को दिल करता है !

गुलज़ार साहब

न आने कि आहट, न जाने कि टोह मिलती है ,कब आते हो कब जाते हो !ईमली का पेड़ हवा में हिलता है तो ईटों कि दीवार पर छाई का छीटा पड़ता है !और ज़ज्फ़ हो जाता है जैसे सूखी मट्टी पर पानी का कोई कतरे फेंक गया हो !कब आते हो कब जाते हो!!

छाँव-छाँव चला था मैं अपना बदन बचाकर ,कि रूह को एक खूबसूरत सा जिस्म दे दूँ,न कोई सलवट ना कोई दाग, न कोई धूप झुलसे, ना चोट खाए ,ना ज़ख्म छुए ना दर्द पहुंचे !बस एक कोरी -कवाँरी सुबह का जिस्म पहना दूँ रूह को मैं ,मगर तपी जब दोपहर दर्दो कि ,दर्द की धूप से गुजरा ,तो रूह को छाँव मिल गई है !अजीब है दर्द और तस्कीं का साझा रिश्ता ,मिलेगी छाँव तो बस कहीं धूप न मिलेगी.

कल्याणकारी

यदा यदा ही धर्मस्य, ग्लानिर्भवति भारत
अभ्युत्थानम् धर्मस्य, तदात्मनं सृजाम्यहम्
परित्राणाय साधुनां विनाशाय च दुष्कृताम्
धर्मसंस्थापनार्थाय, संभवामि युगे युगे
(अर्थात जब जब धर्म की ग्लानि यानि धर्म से लोगों को नफरत होने लगती है अधर्म बढ़ने लगता है, तो धर्मात्माओं की रक्षा, दुष्टों के नाश और धर्म की स्थापना करना )

वर्ष २००९ का आगमन हो चुका है । पिछले वर्ष सारा विश्व आर्थिक मंदी से जूझता रहा, तो अपना देश उसके साथ आतंकी वारदातें भी झेलता रहा । आशा करें कि वे सब घटनाएं इतिहास की बातें बन कर रह जायेंगी और आने वाला समय कल्याणकारी सिद्ध होगा । नववर्ष के आगमन पर मुझे इस वैदिक सूक्ति का स्मरण हो आता है:
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत् ।।
(सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें, और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े ।)
वैदिक साहित्य में मंत्रों के रूप में प्रार्थनाओं की बहुतायत है । प्रश्नोपनिषद् में अधोलिखित प्रार्थना के वचन देखने को मिलते हैं:
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः ।।
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्योऽरिष्टनेमिः स्वस्ति नो वृहस्पतिर्दधातु ।।
(प्रश्नोपनिषद्, ग्रंथारंभ की प्रार्थना)(ॐ - अर्थात् ईश्वरीय शक्ति तथा उसकी सृष्टि के स्मरण के साथ - हे देवगण, हमारी प्रार्थना है कि परमात्मा के यजन/आराधन में लगे हुये हम कानों से कल्याणमय वचन सुनें; कल्याणकारी दृश्य ही देखें; स्वस्थ अङ्गों एवं शरीर से स्तुति करते हुए आराध्यदेव के कार्य में उपलब्ध आयु का उपभोग करें ।सर्वत्र फैले यश वाले इंद्र हमें कल्याण प्रदान करें; संपूर्ण विश्व का ज्ञान रखने वाले पूषा/सूर्य हमारा कल्याण करें; अरिष्टों/रोगों के विनाश की शक्ति वाले गरुड़ देवता हमारे लिए कल्याणकारी सिद्ध हों; बुद्धि के स्वामी वृहस्पति हमारे कल्याण की पुष्टि करें ।)

इस प्रार्थना में मानव जाति के सर्वांगीण कल्याण के विचार निहित हैं । उक्त मंत्र में अमूर्त शक्तियों का आवाहन किया गया है । मंत्र में इंद्रदेवता, पूषादेवता, गरुणदेवता एवं वृहस्पतिदेवता का उल्लेख है । वैदिक चिन्तकों की दृष्टि में प्राणियों में जीवात्मा का निवास तो रहता ही है, निर्जीव तंत्रों के पीछे भी अधिष्ठाता देवता रहते हैं । ये अमूर्त शक्तियां हैं जो मानव जीवन को नियंत्रित या प्रभावित करती हैं । मेरे लिए इस प्रकार का चिंतन रहस्यमय है । मैं नहीं समझ पाया हूं कि इंद्रादि शक्तियों का वास्तव में कोई अस्तित्व है भी क्या । आस्थावानों के लिए वे हैं और दूसरों के लिए नहीं ।
सत्य क्या है, यह समझ में न भी आवे तो भी इस तथा इसके सदृश प्रार्थनाओं की अपनी सार्थकता है यह मैं अवश्य मानता हूं । यदि अदृश्य तथा अमूर्त शक्तियों हैं तो वे हमें कल्याण की ओर प्रेरित करेंगी यह आशा मन में जागती है । किंतु वे न भी हों तो भी कल्याणप्रद विचारों का बारंबार का मनन अवश्य ही मनुष्य के व्यक्तित्व में सार्थक परिवर्तन लायेगा यह सोचा जा सकता है । सद् विचार किसी भी बहाने मन में जगें, वे कल्याणकारी ही सिद्ध होंगे ऐसा मेरा मत है

सत्य वचन

Remember,there are no real failures in life,only results.There are no true tragedies,only lessons.And there really are no problems,only opportunities waiting to be recognized as solutions by the person of wisdom.

The hand that gives is the hand that gathers
When u send ur money out,remember always to bless it।Ask it to bless everybody that it touches,ad command it to go out and feed the hungry and clothe the naked,and command it to come back to u a million-fold.Don't pass over this lightly.i m serious.

The real secret to getting control of your life is to restore a sense of focus in your days.The real secret to getting things done is knowing what things need to be left undone.

The Tragedy of life is not death,but what we let die inside of us while we live

The Deepest personal defeat suffered by human beings is constituted by the difference between what one was capable of becoming and what one has in fact become.

too many people spend more time focusing on their weaknesses rather than developing their strenths

The weakest among us has a gift,however seemingly trival,which is peculiar to him and which worthily used will be a gift also to his race.

Wadswoth Longfellow's wise words
The heights by great men reached and kept
were not attained by sudden flight
But they,while their companions slept,
Were toiling upward in the night.


When u were born,u cried while the world rejoiced.Live ur life in such way that when udie,the world cries while you rejoice

어려운 /difficult/कठिन

"세상에서 가장 어려운 일이 뭔지 아니?"
"흠... 글쎄요, 돈버는 일? 밥먹는 일?"
"세상에서 가장 어려운 일은..사람이 사람의 마음을 얻는 일이란다. 각각의 얼굴만큼 다양한 각양각색의 마음을 순간에도 수만 가지의 생각이 떠오르는데.. 그 바람 같은 마음이 머물게 한다는 건... 정말 어려운 거란다."