यदा यदा ही धर्मस्य, ग्लानिर्भवति भारत
अभ्युत्थानम् धर्मस्य, तदात्मनं सृजाम्यहम्
परित्राणाय साधुनां विनाशाय च दुष्कृताम्
धर्मसंस्थापनार्थाय, संभवामि युगे युगे
(अर्थात जब जब धर्म की ग्लानि यानि धर्म से लोगों को नफरत होने लगती है अधर्म बढ़ने लगता है, तो धर्मात्माओं की रक्षा, दुष्टों के नाश और धर्म की स्थापना करना )
वर्ष २००९ का आगमन हो चुका है । पिछले वर्ष सारा विश्व आर्थिक मंदी से जूझता रहा, तो अपना देश उसके साथ आतंकी वारदातें भी झेलता रहा । आशा करें कि वे सब घटनाएं इतिहास की बातें बन कर रह जायेंगी और आने वाला समय कल्याणकारी सिद्ध होगा । नववर्ष के आगमन पर मुझे इस वैदिक सूक्ति का स्मरण हो आता है:
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत् ।।
(सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें, और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े ।)
वैदिक साहित्य में मंत्रों के रूप में प्रार्थनाओं की बहुतायत है । प्रश्नोपनिषद् में अधोलिखित प्रार्थना के वचन देखने को मिलते हैं:
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः ।।
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्योऽरिष्टनेमिः स्वस्ति नो वृहस्पतिर्दधातु ।।
(प्रश्नोपनिषद्, ग्रंथारंभ की प्रार्थना)(ॐ - अर्थात् ईश्वरीय शक्ति तथा उसकी सृष्टि के स्मरण के साथ - हे देवगण, हमारी प्रार्थना है कि परमात्मा के यजन/आराधन में लगे हुये हम कानों से कल्याणमय वचन सुनें; कल्याणकारी दृश्य ही देखें; स्वस्थ अङ्गों एवं शरीर से स्तुति करते हुए आराध्यदेव के कार्य में उपलब्ध आयु का उपभोग करें ।सर्वत्र फैले यश वाले इंद्र हमें कल्याण प्रदान करें; संपूर्ण विश्व का ज्ञान रखने वाले पूषा/सूर्य हमारा कल्याण करें; अरिष्टों/रोगों के विनाश की शक्ति वाले गरुड़ देवता हमारे लिए कल्याणकारी सिद्ध हों; बुद्धि के स्वामी वृहस्पति हमारे कल्याण की पुष्टि करें ।)
इस प्रार्थना में मानव जाति के सर्वांगीण कल्याण के विचार निहित हैं । उक्त मंत्र में अमूर्त शक्तियों का आवाहन किया गया है । मंत्र में इंद्रदेवता, पूषादेवता, गरुणदेवता एवं वृहस्पतिदेवता का उल्लेख है । वैदिक चिन्तकों की दृष्टि में प्राणियों में जीवात्मा का निवास तो रहता ही है, निर्जीव तंत्रों के पीछे भी अधिष्ठाता देवता रहते हैं । ये अमूर्त शक्तियां हैं जो मानव जीवन को नियंत्रित या प्रभावित करती हैं । मेरे लिए इस प्रकार का चिंतन रहस्यमय है । मैं नहीं समझ पाया हूं कि इंद्रादि शक्तियों का वास्तव में कोई अस्तित्व है भी क्या । आस्थावानों के लिए वे हैं और दूसरों के लिए नहीं ।
सत्य क्या है, यह समझ में न भी आवे तो भी इस तथा इसके सदृश प्रार्थनाओं की अपनी सार्थकता है यह मैं अवश्य मानता हूं । यदि अदृश्य तथा अमूर्त शक्तियों हैं तो वे हमें कल्याण की ओर प्रेरित करेंगी यह आशा मन में जागती है । किंतु वे न भी हों तो भी कल्याणप्रद विचारों का बारंबार का मनन अवश्य ही मनुष्य के व्यक्तित्व में सार्थक परिवर्तन लायेगा यह सोचा जा सकता है । सद् विचार किसी भी बहाने मन में जगें, वे कल्याणकारी ही सिद्ध होंगे ऐसा मेरा मत है
1 comment:
प्रिय संतोष,
अच्छे ब्लॉग के लिए बधाई.
इसमें कुछ हिंदी और कोरियन से संबंधित सामग्री भी डालने की कोशशि करिए, जैसे कि कोरियन के अभिवादन आदि के बुनियादी शब्द देवनागरी लिपि में उनके अर्थ के साथ. इसी तरह कोरियन में हिंदी के. बहुत शुभकामनाएं
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